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Thursday 31 December 2020

तन्दरूस्त शरीर अच्छा आहार

 

सभी धर्मो में उपवास रखने की प्रक्रिया हैं। और उसके वैज्ञानिक आधार भी हैं।  जब हम खाना नही खा रहे होते हैं। उस समय हमारा शरीर भीतरी अंगो की मरम्मत कर रहा होता हैं। और शरीर खाना पचाने के बाद आराम करता है। आदमी को उपवास के अलावा भी कम आहार लेना चाहिये। ताकि बीच बीच में हमारे आंतरिक अंगो को आराम मिलता रहे। एक बीमार शरीर और बीमार मन खुद के लिए तो कष्ट दायक होता ही हैं। वरन घर के लिए भी कष्टदायक होता हैं। घर में एक व्यक्ति बीमार होता हैं। तो घर के सभी प्रियजन भी दुखी होते हैं।

अब ये नही की बीमार का ईलाज ना करवाये। सभी मनुष्य बीमार होते हैं। मगर कुछ बीमारिया तो हमारे गलत आहार विहार के कारण होती हैं। जैसा आहार हम लेते है। वैसे ही हमारे विचार और व्यक्तित्व बनता हैं। सोच समझकर अच्छा सन्तुलित आहार लेना चाहिए। तन्दरूस्त शरीर वाले मनुष्य पर बीमारियां कम हमला करती हैं अभी हमने ये कोरोना काल में देखा गया हैं। जिन लोगो की इम्यूनिटी और रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक हैं। इन पर कोरोना का प्रभाव नही हुआ हैं। या कम मात्रा में हुआ हैं।

अगर हमारा शरीर तन्दरूस्त होगा तो हम अपने जो भी कार्य करते हैं। अच्छे से कर पायेंगे। हमारा मन तन्दरूस्त होगा। मगर शरीर की तन्दरूस्ती काफी हद तक हमारे आहार पर निर्भर करती हैं। जैसा अन्न वैसा मन और तन। आजकल भागती दौडती जिन्दगी में फास्ट फूड का ज्यादा प्रचलन चल गया हैं। पैकेट फूड का भी बहुत चलन हैं। या तो नास्ता छोड कर फास्ट फूड खा लेते हैं। या दोपहर का खाना छोडकर खाते हैं। ये तंदरूस्ती के लिए अच्छा नही हैं।

भोजन वो खाये जो हमारी संस्कृति हैं। जो हमारे बडे बुजुर्ग खाते आये हैं। दाले, हरी सब्जी, दूध, दही, मक्खन आदि ही खाये। वैसे तो कोई डाइटिषियन या चिकित्सक ही बता सकते हैं। कि किस भोजन में ज्यादा प्रोटीन या विटामिन और पोषक तत्व होते हैं। मगर ये भोजन दाले, चने, हरी सब्जी, गेंहू , चावल, दूध , दही, मक्खन आदि हमारे पूर्वजो के मुख्य भोजन में थे। और पूर्वजो ने तनाव मुक्त और अच्छे स्वास्थय के साथ जीवन व्यतीत किया हैं। कहां भी गया हैं दाल रोटी खाये प्रभु के गुण गाये।

आजकल युवा मादक पदार्थो का सेवन भी कर रहे हैं। और हाई सोशयटी के युवा और भी एडवांस नशे कर रहे हैं। जो नशा नही करते हैं उनको माडर्न नही समझा जाता हैं। मगर इन पदार्थो का सेवन करके कुछ समय तक ही षान्ति मिलती हैं। और मजा आता हैं। मगर दीर्घकालिक शान्ति नही मिलती हैं। और ना ही दीर्घकालिक मजा आता हैं। बल्कि तनाव ही मिलता हैं। उल्टा मनुष्य इनका आदि हो जाता हैं। मादक पदार्थो का सेवन करके मन को खुशी नही मिलती हैं। मनुष्य के खून में ये जहर मिलता चला जाता हैं। और उसके दिल , दिमाग ही नही पूरे शरीर पर इसका असर पडता हैं।

एक तो मनुष्य को पहले से ही तनाव हैं और इन चीजो के सेवन से और तनाव में जाता हैं। शरीर पर बुरा प्रभाव पडता हैं। और मन पर भी बुरा असर पडता हैं। नषे के बाद मनुष्य के मन में अच्छे विचार नही सकते हैं। और मन भी खुशी की अनुभूति नही करता हैं। आध्यात्म का नशा करने से मनुष्य को खुशी मिलती हैं। उसके अन्दर सकरात्मक विचार आते हैं। सकरात्मक विचार आते है। तो दिल दिमाग दोनो अच्छे से कार्य करते हैं।

हमको आहार बहुत सोच समझ के लेना चाहिए। जैसा आहार हमारे अन्दर जायेगा। वैसे ही हमारे मन में विचार आयेंगे। सादा जीवन, सादे खान पान से उच्च विचार बनेंगे। सादा जीवन उच्च विचार रखने भर से ही हमारा शरीर तंदरूस्ती की अनूभूति करता हैं। फास्ट फूड ,तला भुना और पैकेट फूड और जूस ना ले। ये सब बनावटी खाना हैं। हमारे पूर्वज कभी ये चीज नही खाते थे। बल्कि उनके समय में तो ये सब होता ही नही था। हमारे पूर्वज हमें यहां तक ले आये हैं। तो हम भी उनके पदचिन्हो पर चलकर अपने परिवार को आगे ले जा सकते हैं।

जहां तक हो तो हल्का भोजन ही ले। हफते में एक दिन उपवास भी रख सकते हैं। अगर उपवास नही रख सकते हैं। तो भोजन थोडा थोडा करके खाये। अगर 20 साल से कम हैं तो निष्चिंत होकर खाये। क्योकि नहाये बाल और खाये गाल छुपते नही हैं। मगर 30 की उम्र के बाद गाल नही बनाने चाहिए। नहाये बाल जरूर दिखाये।

1965 में जंग के बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने सबको एक दिन उपवास रखने को कहा था। उस समय हमारे यहां अन्न कम होता था। मगर अब ऐसा नही हैं। अब उपवास रखने का तात्पर्य ये नही की वो अन्न किसी और के काम जायेगा। बल्कि आज उपवास रखने का तात्पर्य ये हैं कि शरीर उत्तम रहे, शरीर भारी ना हो जाये। और शरीर के भीतरी अंग भोजन पचाने में ही लगे रहे। अधिकता सब चीज की बुरी हैं चाहे वो मीठा हो या नमकीन हो। इसलिए कहते हैं सादा जीवन और उच्च विचार ही उत्तम हैं।